Madhushala (inspired by bachchan ji)
श्री हरिवंश राय बच्चन जी की मधुशाला से प्रेरणा ले कर मैंने ये पंक्तियाँ तब लिखीं थी जब मैं 10th कक्षा में था | आज तक उनके जैसे रस वाली कवितायेँ कम ही मिल पायी हैं |
#1
ह्रदय थाम कर खड़े थे सारे, क्या नृप, क्या सैनिक, क्या ग्वाला ;
द्वार खोल कर निकल रही थी मुस्काती कंचनबाला |
देव स्वर्ग से देख रहे थे निर्विकार उस सुन्दर को
ऋषि मुनि ताप छोड़ चुके, अब बना तपोवन मधुशाला ||
#२
आज नहीं छूना है मुझको,
मदिरालय में मद का प्याला |
हे रम्भा! मुझको अब दे दे ,
अपने तू नयनों का हाला ||
डूब मरुँ उस मद के घर में
तू मेरा उद्धार करे |
लगे सुहानी आज मृत्यु भी
मोक्ष दिला दे मधुशाला
#1
ह्रदय थाम कर खड़े थे सारे, क्या नृप, क्या सैनिक, क्या ग्वाला ;
द्वार खोल कर निकल रही थी मुस्काती कंचनबाला |
देव स्वर्ग से देख रहे थे निर्विकार उस सुन्दर को
ऋषि मुनि ताप छोड़ चुके, अब बना तपोवन मधुशाला ||
#२
आज नहीं छूना है मुझको,
मदिरालय में मद का प्याला |
हे रम्भा! मुझको अब दे दे ,
अपने तू नयनों का हाला ||
डूब मरुँ उस मद के घर में
तू मेरा उद्धार करे |
लगे सुहानी आज मृत्यु भी
मोक्ष दिला दे मधुशाला
classical :)
ReplyDeleteअत्यंत उत्कृष्ट रचना। आश्चर्य है कि आपके ब्लॉग पर पिछले छ: महिने से सन्नाटा पसरा है। लिखते रहिए! कहीं लेखनी को जंग न लग जाए।
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