Suraj ka Sapna

सुबह से आँख में बसता
वो सपना सूरज का .
उसी के ताप से जलता,
पिघलती मोम सी
सब पास की बेबस धराएं.
महल की काली दीवारें जलाता
आग से अपने
वो सपना सूरज का.

और एक रौशनी का है वो दरिया,
बहाता  बाढ़ में
छोटी -बड़ी
सारी निराशा,
नयी धरती बिछाता.
नए खेतों में उपजेंगे
नए दिन के नए सपने.
सुबह से आँख में बसता
वो सपना सूरज का.

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