Madhushala (inspired by bachchan ji)
श्री हरिवंश राय बच्चन जी की मधुशाला से प्रेरणा ले कर मैंने ये पंक्तियाँ तब लिखीं थी जब मैं 10th कक्षा में था | आज तक उनके जैसे रस वाली कवितायेँ कम ही मिल पायी हैं | #1 ह्रदय थाम कर खड़े थे सारे, क्या नृप, क्या सैनिक, क्या ग्वाला ; द्वार खोल कर निकल रही थी मुस्काती कंचनबाला | देव स्वर्ग से देख रहे थे निर्विकार उस सुन्दर को ऋषि मुनि ताप छोड़ चुके, अब बना तपोवन मधुशाला || #२ आज नहीं छूना है मुझको, मदिरालय में मद का प्याला | हे रम्भा! मुझको अब दे दे , अपने तू नयनों का हाला || डूब मरुँ उस मद के घर में तू मेरा उद्धार करे | लगे सुहानी आज मृत्यु भी मोक्ष दिला दे मधुशाला