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Showing posts from February, 2010

Madhushala (inspired by bachchan ji)

श्री हरिवंश राय बच्चन जी की मधुशाला से प्रेरणा ले कर मैंने ये पंक्तियाँ तब लिखीं थी जब मैं 10th  कक्षा में था | आज तक उनके जैसे रस वाली कवितायेँ कम ही मिल पायी  हैं | #1 ह्रदय थाम कर खड़े थे सारे, क्या नृप, क्या सैनिक, क्या ग्वाला ; द्वार खोल कर निकल रही थी मुस्काती कंचनबाला | देव स्वर्ग से देख रहे थे निर्विकार उस सुन्दर को ऋषि मुनि ताप छोड़ चुके, अब बना तपोवन मधुशाला || #२ आज नहीं छूना है मुझको, मदिरालय में मद का प्याला | हे रम्भा! मुझको अब दे दे , अपने तू नयनों का हाला || डूब मरुँ उस मद के घर में तू मेरा उद्धार करे | लगे सुहानी आज मृत्यु भी मोक्ष दिला दे मधुशाला

Pashu Prem

पशु प्रेम  सावन के जल में सोंधे भूतल में हरियाली के बीच गाड़ी को खींच किसान खीज रहा है | बैलों को पीट रहा है | और तभी मेनका आती है - किसान को खींच वाणी से पीट ले जाती है और पशु अत्याचार के जुर्म में हथकड़ी लगाती है |

Kranti Gaan

काल यदि आया है अब तो करें क्रांति का जय नारा | पुष्पक सेज भुला कर अब दें  कंटक राह पर जीवन सारा | कल कोमल हो इसके हेतु  आज अंत हो जाए तो क्या ? युद्ध बिना ये जीवन क्या है ? मोक्ष नहीं मिल पाए तो क्या ?  सूर्य नहीं बनते हैं तब भी  चलो बनें कोई धूमिल तारा | काल यदि आया है अब तो  करें क्रांति का जय नारा || कर कर में रहकर क्या होगा  चलो कफ़न अब बांधें सर पर,  पुरुष नहीं बैठा करते हैं  कर में लेकर चूड़ी घर पर | ले मशाल अब पथ पर बढ़ कर  आज बाधा देना है पारा |  काल यदि आया है अब तो  करें क्रांति का जय नारा ||