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देश मेरे,मैं तेरी खातिर

अस्ताचल सूरज  को भी मैं खींच-खींच कर, वापस लाकर, नभ के उच्च शिखर ले जाकर रख आऊँगा| ऐ देश मेरे, मैं तेरी खातिर, सागर के गहरे पानी को चीर-चीर कर मंथन करके , अमृत लाकर तुझको अमर बना जाउँगा | पुष्पों की  बगिया  कर अर्पण, खेतों के सीने से सोना  उपजा कर, तेरे चरणों में देश मेरे मैं मेरा मष्तक खरे खडग की नोंक पे अर्पित कर जाऊँगा |  देश मेरे  तेरी मिटटी के कम्बल में  लिपटा  मैं हिम को, वर्षा को और तूफानों को सह जाता हूं, तेरी ममता की  नदिया के  कोमल लहरों में बह जाता हूं| ए देश मेरे यह मेरा जीवन  तन मन धन  मैं अंजन मैं तुझको देता हूं और बदले में तेरी कोमल गोदी में सर को रख देता  हूँ |