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इश्क़ से आज़ादी

आज मैं आज़ाद हूँ आसमान के रंग को कागज़ पे बयां करने को, और उसमे मुझे तुम्हारी परछाई नज़र न आएगी । और बागों में खिलते  फूलों से आती खुशबुओं में फिर तुम्हारी कभी कोई भी खुशबु नहीं अब आएगी । और चाँद चाँद ही हुआ करेगा रात में अक्स न कोई होगा तुम्हारा, छेड़ने आया  जो होगा फिर किसी पुरानी बात पे। आज मैं  आज़ाद हूँ - अब ख्यालों में तुम्हारा - कोई  भी - छोटा- बड़ा सा,  कैसा भी - अच्छा-बुरा सा, कुछ भी अब न आएगा , और मेरे थे जो सपने खो गए थे , बस तुम्हारे हो गए थे , फिर मेरे अब हो जायेंगे  । और हकीकत - जो कहीं पर छूट गयी थी या फिर शायद रूठ गयी थी, आज  दोबारा साथ है, और मेरे जज़्बात हैं फिर से मेरे ही काबू मे।