कभी कभी ख्वाबों में जब तुम आती हो,.....
कभी कभी ख्वाबों में जब तुम आती हो, इतने सालों के बाद भी | कभी कभी रातों में जब रजनीगंधा खिड़की से बाँहें फैलाती है- और हवा थपकियाँ देती है हलके हलके से | सन्नाटे की लोरी, रात का राग कोई बन जाती है , जब तुम आती हो, इतने सालों के बाद भी | ख्वाब कभी शामों के और कभी सुबहों के | ख्वाब कभी जन्नत के और कभी-कभी जंगल के अंधियारों के, सन्नाटों के | जहां तुम हो, मैं हूँ और बीच की तन्हाई हैं| ख्वाब तो मेरे अपने पर नहीं होते हैं, और सवेरे आँखों में जो किस्से हैं, नहीं होते हैं | बस होती है एक सुबह सुरीली, दिन दीवाने होते हैं, जब तुम आती हो, इतने सालों के बाद भी | कभी कभी.....