अस्ताचल सूरज को भी
मैं खींच-खींच कर,
वापस लाकर,
नभ के उच्च शिखर
ले जाकर रख आऊँगा|
ऐ देश मेरे,
मैं तेरी खातिर,
सागर के गहरे पानी को
चीर-चीर कर
मंथन करके ,
अमृत लाकर
तुझको अमर बना जाउँगा |
पुष्पों की बगिया कर अर्पण,
खेतों के सीने से सोना
उपजा कर,
तेरे चरणों में
देश मेरे
मैं मेरा मष्तक
खरे खडग की नोंक
पे अर्पित कर जाऊँगा |
देश मेरे
तेरी मिटटी के कम्बल में
लिपटा मैं
हिम को, वर्षा को
और तूफानों को
सह जाता हूं,
तेरी ममता की
नदिया के
कोमल लहरों में
बह जाता हूं|
ए देश मेरे
यह मेरा जीवन
तन मन धन
मैं अंजन मैं तुझको देता हूं
और बदले में
तेरी कोमल गोदी में
सर को रख देता हूँ |
मैं खींच-खींच कर,
वापस लाकर,
नभ के उच्च शिखर
ले जाकर रख आऊँगा|
ऐ देश मेरे,
मैं तेरी खातिर,
सागर के गहरे पानी को
चीर-चीर कर
मंथन करके ,
अमृत लाकर
तुझको अमर बना जाउँगा |
पुष्पों की बगिया कर अर्पण,
खेतों के सीने से सोना
उपजा कर,
तेरे चरणों में
देश मेरे
मैं मेरा मष्तक
खरे खडग की नोंक
पे अर्पित कर जाऊँगा |
देश मेरे
तेरी मिटटी के कम्बल में
लिपटा मैं
हिम को, वर्षा को
और तूफानों को
सह जाता हूं,
तेरी ममता की
नदिया के
कोमल लहरों में
बह जाता हूं|
ए देश मेरे
यह मेरा जीवन
तन मन धन
मैं अंजन मैं तुझको देता हूं
और बदले में
तेरी कोमल गोदी में
सर को रख देता हूँ |